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Saturday, April 5, 2025

राजस्थान में सरकारी स्कूलों के 'वार्षिकोत्सव बजट' में हुआ खेला, अब शिक्षक पीट रहे माथा! जानें मामला

जयपुर: राजस्थान की ने सरकारी स्कूलों के वार्षिकोत्सव () के बजट पर कैंची चलाकर सबको चौंका दिया है। सालाना जलसे के लिए मिलने वाले फंड में 50 फीसदी की कटौती का फरमान जारी हो गया है, जिससे आगामी सत्र में स्कूलों में धूम-धड़ाके की जगह अब सीमित संसाधनों में काम चलाना पड़ेगा। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह कटौती उन स्कूलों पर भी लागू कर दी गई है, जहां वार्षिकोत्सव हो चुके हैं। अब स्कूल प्रबंधन और शिक्षक असमंजस में हैं कि पहले हुए खर्च का हिसाब कैसे पूरा करें?

वित्तीय वर्ष खत्म से पहले आया फरमान

शिक्षा विभाग के नियमों के मुताबिक, हर साल 25 जनवरी तक स्कूलों को अपना सालाना उत्सव निपटाना होता है। छोटे स्कूलों को 5,000 रुपये और बड़े स्कूलों को 10,000 रुपये की ग्रांट मिलती थी। लेकिन इस बार तो हालत ये हो गई कि वार्षिकोत्सव से पहले फंड ही जारी नहीं हुआ। मजबूरी में प्रिंसिपल्स और शिक्षकों ने अपनी जेब से पैसे लगाकर कार्यक्रम किए। वहीं अब, दो महीने बाद जब बजट आया तो उसमें भी आधे पैसे काट दिए गए। सीनियर स्कूलों को 5,000 की जगह 2,500 और प्राइमरी स्कूलों को महज 1,250 रुपये थमा दिए गए। वो भी वित्तीय वर्ष खत्म होने से ठीक तीन दिन पहले, 29 मार्च को।शिक्षकों का कहना है, ‘हमने तो पहले ही अपने पैसे लगाकर बच्चों के लिए कार्यक्रम कर दिया। अब सरकार कह रही है कि आधा पैसा ही मिलेगा। बाकी का इंतजाम कहां से करें’? कई स्कूलों में तो पुरस्कार वितरण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का खर्चा पहले के बजट के हिसाब से किया गया था। अब आधा फंड मिलने से बाकी रकम शिक्षकों को अपनी जेब से भरनी पड़ रही है।

शिक्षकों के चेहरों पर मायूसी छाई!

इस पूरे मामले में शिक्षक नेता यूनुस अली भाटी ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘ये क्या मजाक है? अगर बजट कटौती करनी थी तो पहले बता देना चाहिए था। हम उसी हिसाब से प्लानिंग करते। अब जब खर्च हो चुका है, तो कटौती का क्या मतलब? सरकार शिक्षकों पर अनावश्यक बोझ डाल रही है।’ उनका सुझाव है कि विभाग को पूरी राशि जारी करनी चाहिए, ताकि शिक्षकों को राहत मिले।दूसरी ओर, स्कूलों के संस्था प्रधान परेशान हैं। एक प्रिंसिपल ने कहा, ‘हमने तो जैसे-तैसे पैसे जुटाकर बच्चों के लिए अच्छा आयोजन किया। अब परिषद ने आधा बजट देकर हमें बीच मझधार में छोड़ दिया।’शिक्षकों का कहना है कि तो अब सवाल ये है-क्या सरकार इस ‘बजट कट’ ड्रामे का कोई हल निकालेगी, या फिर सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपनी जेब ढीली करते रहेंगे? फिलहाल तो वार्षिकोत्सव की चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है, और शिक्षकों के चेहरों पर मायूसी छाई हुई है।


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